हिमांशु साँगाणी / गरियाबंद
गरियाबंद गिरसूल पंचायत इन दिनों लोकतंत्र के नए ‘टेक्नोलॉजी’ युग का गवाह बन रहा है। जनपद पंचायत अध्यक्ष नेहा सिंघल और उनके पति दीपक सिंघल ने महज 8 दिन में देवभोग से गिरसूल की मतदाता सूची में अपना नाम ट्रांसफर करवा लिया। ऐसा लगता है, जैसे पंचायत राजनीति में नाम जुड़वाना अब ओला कैब बुक करने जितना आसान हो गया है। गांव वालों का मानना है कि यह सिर्फ राजनीतिक लाभ का खेल है। देवभोग अब नगर पंचायत बन चुका है, जहां पंचायत चुनाव नहीं होते। ऐसे में नेहा सिंघल ने गिरसूल के रास्ते जिला पंचायत का सफर तय करना चाह रही है ।
गिरसूल में ‘सरपंची टूरिज्म’?
शिकायत करने वाले कन्हैया मांझी ( अधिवक्ता )
का कहना है कि नेहा सिंघल और उनके पति आज तक गिरसूल में वोट देने नहीं आए। लेकिन जैसे ही देवभोग नगर पंचायत बना और वहां चुनाव लड़ने का ऑप्शन खत्म हुआ, गिरसूल अचानक से उनका ‘परमानेंट एड्रेस’ बन गया। मज़ेदार बात यह है कि इस ‘नाम ट्रांसफर’ के लिए प्रपत्र क का इस्तेमाल किया गया, जो आमतौर पर नए निवासियों के लिए होता है।
प्रशासन और नेहा जी की सफाई
नेहा सिंघल का कहना है कि वे सामान्यतः दोनों जगह रहती हैं। “देवभोग में हमारा व्यापार है और गिरसूल में हमारा घर है ” उन्होंने कहा। वहीं, तहसीलदार हितेश देवांगन ने कहा, “सब कुछ नियमानुसार किया गया है।” ग्रामीण इस बयान पर हैरान हैं और कह रहे हैं कि अगर यह नियम सबके लिए खुला है, तो शायद गिरसूल जल्द ही ‘पॉलिटिकल माइग्रेशन स्पॉट’ बन जाएगा।
ग्रामीणों का सवाल: ये कौन सा लोकतंत्र?
गिरसूल के सरपंच मैना मांझी और उप सरपंच तोशन राम यादव सहित स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि यह मामला पूरी तरह से राजनीति का खेल है। “अगर नेहा जी गिरसूल की निवासी हैं, तो नाम जोड़ने में प्रपत्र क क्यों भरा गया?” ग्रामीणों का आरोप है कि बूथ लेवल ऑफिसर मंजुला कश्यप और तहसीलदार ने मिलकर इस पूरे मामले को एकतरफा निपटा दिया। इसके अलावा प्रपत्र ग़ का भी निराकरण नहीं किया गया है । और न ही ग्रामीणों को बुलाकर इसकी जांच की गई ।
गिरसूल की राजनीति का नया अध्याय
इस पूरे मामले ने पंचायत चुनावों को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह राजनीति का नया फॉर्मूला है, जहां नियमों को ‘फ्लेक्सिबल’ बनाकर जरूरत के मुताबिक ढाल लिया जाता है? या फिर यह लोकतंत्र की उस ताकत का प्रदर्शन है, जो सब कुछ संभव बना देती है?
गिरसूल के लोग अब चुनावी नतीजों का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन एक बात तो तय है – इस बार का चुनाव सिर्फ वोटों का नहीं, बल्कि सच्चाई और राजनीति के जादू के बीच होगा।