हिमांशु साँगाणी
गरियाबंद के नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी ने एक बार फिर से सुर्खियां बटोरीं। अध्यक्ष पद के उम्मीदवार गैंद लाल सिन्हा के समर्थन में आयोजित पूर्व विधायक अमितेश शुक्ल का रोड शो चर्चा का विषय बन गया, लेकिन इसके केंद्र में कांग्रेस की चुनावी रणनीति से ज्यादा गुटबाजी और नेतृत्व की कमी रही।

आधा किलोमीटर का रोड शो, बड़े नेता नदारद
कांग्रेस भवन से सुभाष चौक तक निकाले गए रोड शो में पार्टी के कई बड़े चेहरे गैरमौजूद रहे। सुभाष चौक से अंबेडकर चौक और बस स्टैंड तक पहुंचते-पहुंचते कई पार्षद प्रत्याशी गायब हो गए। पार्टी में मची इस उथल-पुथल ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या कांग्रेस अपनी चुनावी तैयारियों को लेकर गंभीर है या फिर अंदरूनी कलह से ही उलझी हुई है। इस दौरान बस स्टैंड में हुई नुक्कड़ सभा के दौरान अमितेश शुक्ल ने पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष गफ्फू मेमन को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरते हुए कहा कि वे अपनी ही टिकट दुबारा नही ला पाए , जो भाजपा की कमजोरी को उजागर करता है
भाजपा का शक्ति प्रदर्शन, सभी दिग्गज नेता मौजूद
वहीं दूसरी तरफ, भाजपा ने अपने अध्यक्ष पद के उम्मीदवार रिखी राम यादव के समर्थन में आज जबरदस्त शक्ति प्रदर्शन किया। विधायक रोहित साहू, पूर्व सांसद चंदूलाल साहू और पूर्व संसदीय सचिव गोवर्धन मांझी जिला अध्यक्ष अनिल चंद्राकर जैसे दिग्गज नेताओं की मौजूदगी ने भाजपा की एकजुटता को और मजबूती दी। इस दौरान सभी पार्षद प्रत्याशी भी मौजूद रहे । अनुशासन और संगठन की ताकत भाजपा के रोड शो में साफ नजर आई।
अनुशासन में भाजपा आगे, कांग्रेस में बागी हावी
भाजपा ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त नेताओं पर तुरंत कार्रवाई करते हुए निर्दलीय प्रत्याशियों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसके उलट, कांग्रेस अब तक अपने बागी नेताओं पर कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई है। कई बागी नेता निर्दलीय उम्मीदवार बनकर चुनाव मैदान में हैं, जो उपाध्यक्ष पद के लिए गेम चेंजर साबित हो सकते हैं और कांग्रेस और भाजपा की जीत में रोड़ा बन सकते हैं।
क्या कांग्रेस में नेतृत्व संकट?
सबसे बड़ी बात यह है कि अमितेश शुक्ल की पसंद के उम्मीदवार गैंद लाल सिन्हा के समर्थन में अब तक कांग्रेस का कोई बड़ा नेता चुनाव प्रचार के लिए आगे नहीं आया। जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भाव सिंह साहू का रोड शो से गायब रहना भी पार्टी के भीतर नेतृत्व की स्पष्टता और एकजुटता की कमी को दर्शाता है।
आगे क्या?
अगर कांग्रेस ने समय रहते अनुशासन और एकजुटता पर ध्यान नहीं दिया, तो ये बागी उम्मीदवार पार्टी के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं। भाजपा के अनुशासन के सामने कांग्रेस की गुटबाजी उसे चुनावी मैदान में कमजोर कर सकती है। अब देखना यह होगा कि कांग्रेस इस संकट से कैसे उबरती है या फिर यह गुटबाजी उसके लिए हार की वजह बन जाएगी।