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नक्सलियों के दो दिनों में दो पत्र बम दो दिनों में नक्सलियों के दो प्रेसनोट एक में युद्ध विराम की अपील, दूसरे में गद्दारों पर वार तेलंगाना से बस्तर तक फैल रही नक्सली गुटबाजी और आंतरिक फूट का खुलासा पढ़ें पूरी खबर पैरी टाईम्स पर ।
गरियाबंद/छत्तीसगढ़ नक्सली संगठन के भीतर कुछ असामान्य हलचल शुरू हो चुकी है। दो दिनों के भीतर अलग-अलग इलाकों से दो प्रेसनोट जारी हुए और दोनों के संदेश एक-दूसरे के बिल्कुल विपरीत। एक ओर तेलंगाना राज्य समिति ने 6 महीने के लिए युद्ध विराम (Ceasefire) की घोषणा करने की बात कही, तो दूसरी ओर बस्तर की पश्चिम डिवीजनल कमेटी ने अपने ही साथियों पर गद्दारी के आरोप जड़ दिए। इन दोनों पत्रों के बीच जो फर्क है, वही आज नक्सल आंदोलन की दिशा और दशा को समझने का सबसे बड़ा संकेत बन गया है।

नक्सलियों के दो दिनों में दो पत्र बम तेलंगाना से उठी शांति वार्ता की आवाज
तेलंगाना राज्य समिति के नक्सली नेता जगन ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में केंद्र और राज्य सरकार से अपील की है कि आने वाले 6 महीनों तक दोनों पक्षों के बीच युद्ध विराम लागू किया जाए। पत्र में लिखा गया है कि संगठन भी संवाद के रास्ते पर आगे बढ़ना चाहता है और आम जनता की समस्याओं का समाधान बातचीत से खोजने के पक्ष में है। जगन के इस बयान ने राजनीतिक और खुफिया हलकों में हलचल मचा दी है। इससे पहले ओडिशा और महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ सीमा क्षेत्रों से भी इसी तरह की पहल वाले पत्र सामने आ चुके हैं। यानी, तीन राज्यों से एक जैसी शांति की बातें आना यह दर्शा रहा है कि नक्सल संगठन अब अपने भविष्य को लेकर गंभीर पुनर्विचार कर रहा है। यह बदलाव किसी आंतरिक दबाव या रणनीतिक मजबूरी का परिणाम भी हो सकता है।

बस्तर से आई गद्दारी की गूंज
दूसरी ओर, छत्तीसगढ़ के पश्चिम बस्तर डिवीजनल कमेटी ने जारी प्रेसनोट में नक्सली कमलू पुनेम पर गंभीर आरोप लगाए हैं। बयान में कहा गया कि आत्मसमर्पण के दौरान उसने संगठन के 2 लाख रुपये लेकर भाग गया और अब पुलिस के हाथों खेल रहा है। यही नहीं, उस पत्र में सरेंडर करने वाले अन्य नक्सलियों को भी गद्दार कहा गया है। पत्र में लिखा गया है कि जो नक्सली हथियार लेकर समर्पण करते हैं, वे जनता के साथ विश्वासघात कर रहे हैं और संगठन के सिद्धांतों को धोखा दे रहे हैं। इस बयान ने न केवल आंतरिक विभाजन को उजागर किया, बल्कि यह भी बताया कि संगठन के भीतर अब विश्वास की दीवारें दरक रही हैं।
रेड जोन में बढ़ती गुटबाजी और असंतोष
दोनों प्रेसनोट्स के बीच का अंतर इस बात को पुख्ता करता है कि नक्सल संगठन अब एकजुट नहीं रहा। एक गुट शांति वार्ता और सीजफायर की बात कर रहा है, जबकि दूसरा अब भी बंदूक और खून के रास्ते पर अड़ा हुआ है। नक्सल जानकर मानते हैं कि यह फूट केवल वैचारिक नहीं, बल्कि नेतृत्व की प्रतिस्पर्धा का परिणाम भी है। वरिष्ठ नक्सली नेताओं के मारे जाने और नए चेहरों के उदय ने संगठन को अस्थिर कर दिया है। बस्तर, दंतेवाड़ा और सुकमा , गरियाबंद जैसे इलाकों में लगातार हो रही मुठभेड़ों और आत्मसमर्पणों से संगठन की ताकत कमजोर पड़ी है। सरकार की लोन वर्राटू जैसी योजनाओं और सुरक्षा बलों की रणनीति ने नक्सलियों को मानसिक रूप से भी झकझोर दिया है। ऐसे में युद्ध विराम की बात करने वाले गुट को शायद एक सुरक्षित निकास की तलाश हो, जबकि दूसरे गुट को यह आत्मसमर्पण जैसा कदम लग रहा है।
लाल गलियारे में दरार या रणनीति?
यह सवाल अब बड़ा हो गया है कि क्या यह दोहरा रुख नक्सलियों की अंदरूनी फूट का संकेत है या एक सोची-समझी रणनीति। कुछ खुफिया सूत्र मानते हैं कि संगठन जानबूझकर भ्रम पैदा कर रहा है ताकि पुलिस और प्रशासन असमंजस में रहें। वहीं, कुछ जानकारों का कहना है कि यह नक्सली विचारधारा के भीतर वैचारिक थकान का परिणाम है ।जब आदर्श धीरे-धीरे हार मानने लगते हैं।
बदलाव शांति की ओर है या अंत की ओर
दो दिनों में आए ये दो प्रेसनोट नक्सल आंदोलन के भविष्य को लेकर नए सवाल खड़े कर रहे हैं। क्या युद्ध विराम की अपील नक्सली संगठन की नई रणनीति है, या गद्दार बताने वाला बयान उसके टूटते मनोबल का संकेत? आने वाले महीनों में इस लाल गलियारे से जो अगली आवाज उठेगी, वही बताएगी कि यह बदलाव शांति की ओर है या अंत की ओर।
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