पेड़ के नीचे स्कूल, पाइप में पानी नहीं, सड़क कागज़ पर पंडरीपानी में विकास अधर में ।

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By Himanshu Sangani

हिमांशु साँगाणी पैरी टाइम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद

पेड़ के नीचे स्कूल गरियाबंद के पंडरीपानी गांव में बच्चे पेड़ के नीचे पढ़ने को मजबूर, पानी टंकी अधूरी, सड़क गायब संजय नेताम बोले विकास अधर में लटका है।

गरियाबंद जिले के घने जंगलों के बीच बसे पंडरीपानी गांव में आज भी विकास ढूंढता हुआ भटक रहा है। स्कूल है, पर कमरे नहीं… तो बच्चों ने पेड़ के नीचे ही अपनी यूनिवर्सिटी खोल ली है। ब्लैकबोर्ड पेड़ की छाल है, और कुर्सी के नाम पर धरती माँ खुद मौजूद हैं। पंडरीपानी गांव आज भी विकास के नक्शे में अघोषित वन्य क्षेत्र जैसा ही दिखता है। स्कूल भवन इतना जर्जर है कि उसे देखकर खुद ईंटें भी शर्मिंदा हैं। ऐसे में बच्चों ने शिक्षा का नया बोर्ड खोल लिया है प्राथमिक विद्यालय पेड़ की छांव, पंडरीपानी शाखा ।

पेड़ के नीचे स्कूल

पेड़ के नीचे स्कूल

पेड़ के नीचे स्कूल जब संसद भवन चमके तो क्यों न पढ़ें बच्चे पेड़ की छांव में?

जिला पंचायत सदस्य संजय नेताम जब पंडरीपानी पहुंचे तो ग्रामीणों ने ऐसा कोई दुख नहीं छोड़ा जो साझा न किया हो पेयजल से लेकर आवास तक सब अधर में। शायद शासन ने सोचा, वनवासी हैं, जंगल में ही रह लेंगे ।

पाइपलाइन है, पानी नहीं Welcome to जल जीवन मिशन

गांव में नल है, पाइप है, उम्मीद भी है… बस पानी नहीं है। जल जीवन मिशन के तहत जो टंकी बननी थी, वो शायद स्वर्गलोक में कहीं तैयार हो रही है। नीचे धरती पर तो बस सूखी नलियां हैं।

सड़क, स्वास्थ्य, राशन सब कुछ है, बस गांव से 10 किमी दूर

बीमार पड़ना हो तो पहले सोचना पड़ेगा, क्योंकि स्वास्थ्य सुविधा सिर्फ सरकार की फाइलों में है। राशन के लिए ग्रामीण हर महीने असली ‘पैदल यात्रा’ करते हैं – 10 किमी कच्चे रास्ते से मारागांव तक। सड़क? वो केवल नेताओं के भाषणों में बनी है, असल में नहीं।

चबूतरा तोड़ा गया विकास के नाम पर, पर बना नहीं

गांव का एकमात्र चबूतरा, जिसे ग्रामीणों ने खुद बनाया था, वन विभाग ने यह कहकर तोड़ दिया कि नई तकनीक से बनाएंगे तकनीक तो आई नहीं, पर चबूतरा गया काम से।

संजय नेताम बोले अगर न सुनी गई बात, तो सड़क पर उतरेंगे

जिला पंचायत सदस्य संजय नेताम का कहना है कि बंगले दरकते ही बन जाते हैं, पर पेड़ के नीचे पढ़ते बच्चे किसी को नहीं दिखते विकास हमारा अधिकार है, भीख नहीं। उनका सीधा इशारा शासन-प्रशासन की ओर था अब अगर जवाब नहीं मिला, तो सवाल सड़क पर उठेंगे।

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अधिमान्य पत्रकार गरियाबंद

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