हिमांशु साँगाणी/ गरियाबंद
छत्तीसगढ़ को ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है, लेकिन अब इस धान के पैरे से बनी कलाकृतियों ने भी देश और विदेश में खास पहचान बना ली है। खासकर गरियाबंद जिले में ‘पैरा आर्ट्स’ के जरिए यह बेकार समझा जाने वाला पैरा अब महिलाओं के लिए स्वरोजगार का नया जरिया बन गया है। देश के कई बड़े शहरों के उद्योगपति और राजनेता भी पैरा आर्ट से बनी कलाकृतियों के शौकीन बनते जा रहे हैं।
महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की अनूठी पहल
गरियाबंद में महिला एवं बाल विकास विभाग ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के तहत महिलाओं को पैरा आर्ट्स का 10 दिवसीय प्रशिक्षण दिया है। इस प्रशिक्षण में 27 महिलाएं भाग ले रही हैं, जो धान के पैरे से प्राकृतिक दृश्य, पशु-पक्षी और धार्मिक संरचनाओं जैसी कलाकृतियों का निर्माण सीख रही हैं। महिला एवं बाल विकास अधिकारी अशोक पांडेय ने बताया कि गरियाबंद जैसे छोटे जिले में रोजगार के साधन सीमित हैं, ऐसे में यह कला महिलाओं के लिए एक बड़ा अवसर साबित हो रही है।
विदेशों तक पहुंची पैरा आर्ट की मांग
प्रशिक्षण लेने वाली महिलाएं अब घर के कामों के बाद थोड़ा समय देकर कलाकृतियां तैयार कर रही हैं, जिन्हें ऊंचे दामों पर बेचा जा रहा है। इस कला की मांग सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी तेजी से बढ़ रही है, जिससे महिलाओं की आय में वृद्धि की संभावना है। इन कलाकृतियों को राजिम कुंभ मेले में आने वाले मेहमानों को मोमेंटो के रूप में भेंट करने की योजना भी बनाई जा रही है।
बालोद की नेहा और संतोष की प्रेरणादायक कहानी
बालोद जिले से आई नेहा साहू, जो खुद भी इस कला से आत्मनिर्भर बन चुकी हैं, अब गरियाबंद की महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही हैं। उन्होंने बताया कि इस कला के जरिए वे साल भर में 50 से 60 हजार रुपए कमा लेती हैं। इसी तरह प्रशिक्षक संतोष साहू ने भी बताया कि उन्होंने सैकड़ों लोगों को इस हुनर से आत्मनिर्भर बनाया है।
गरियाबंद का पैरा आर्ट न केवल महिलाओं की आर्थिक स्थिति को सुधारने में मददगार साबित हो रहा है, बल्कि यह कला छत्तीसगढ़ की संस्कृति को भी नई पहचान दिला रही है।