हिमांशु साँगाणी पैरी टाईम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद
डेढ़ करोड़ का इनामी नक्सली गरियाबंद मुठभेड़ में मारा गया डेढ़ करोड़ का इनामी नक्सली बालकृष्णन। वही बालकृष्णन, जिसे 90 के दशक में एक MLA की जान के बदले जेल से आज़ादी मिली थी। पढ़िए उसकी पूरी कहानी।
Gariyaband Naxal Encounter विधायक अपहरण से लेकर जंगल में खौफ तक, ऐसे खत्म हुआ बालकृष्णन का खेल कभी एक विधायक की जान बख्शने की डील में जेल से बाहर आया नक्सली आज मौत के सौदागरों के जाल में फँस गया। तीन राज्यों में डेढ़ करोड़ का इनामी और माओवादी संगठन की केंद्रीय समिति का सदस्य मोडम बालकृष्णन उर्फ बालन्ना, उर्फ मनोज, उर्फ भास्कर, गरियाबंद जिले के कुल्हाड़ी घाट की पहाड़ियों में 11 सितंबर को हुई मुठभेड़ में मारा गया। उसके साथ 9 और नक्सली भी ढेर हुए, जिससे सुरक्षा बलों ने बड़ी सफलता दर्ज की।

डेढ़ करोड़ का इनामी नक्सली
डेढ़ करोड़ का इनामी नक्सली MLA अपहरण से मिली थी जिंदगी का दूसरा मौका
कहानी 90 के दशक की है। आंध्र प्रदेश में तब तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के विधायक मंडावा वेंकटेश्वर राव का नक्सलियों ने अपहरण कर लिया था। नक्सलियों ने विधायक की रिहाई के एवज में जेलों में बंद अपने साथियों को छोड़ने की मांग रखी। उस दौर की सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार पहले टालती रही, लेकिन जब विधायक की पत्नी ने भूख हड़ताल शुरू की, तो सरकार झुक गई।
इसी सौदे में कई नक्सली जेल से छूटे जिनमें से एक था बालकृष्णन वही बालकृष्णन, जो बाद में तीन राज्यों की पुलिस के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बना।
सीमा पर खड़ा किया आतंक का साम्राज्य
जेल से छूटने के बाद बालकृष्णन ने आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के जंगलों को अपना अड्डा बना लिया। संगठन ने उसे छत्तीसगढ़-ओडिशा बॉर्डर पर विस्तार की जिम्मेदारी दी। आईईडी प्लांटिंग, हथियार सप्लाई और खून-खराबे की बड़ी घटनाओं की प्लानिंग में बालकृष्णा का नेटवर्क ही अहम कड़ी था। यही वजह रही कि सरकार ने उस पर कुल मिलाकर डेढ़ करोड़ से अधिक का इनाम रखा था।
कुल्हाड़ी घाट में खात्मा, सुरक्षा बलों की जीत
11 सितंबर को गरियाबंद के कुल्हाड़ी घाट के घने जंगलों में सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच दिनभर चली मुठभेड़ में बालकृष्णन समेत 10 नक्सली ढेर हुए। जवानों का कहना है कि यह ऑपरेशन केवल सफलता नहीं, बल्कि उन निर्दोषों के लिए इंसाफ भी है, जिनकी जान बालकृष्णा के हथियारों ने ली थी।
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25 साल बाद पहुंचे भी परिजन तो शव लेने
13 सितंबर को गरियाबंद जिला अस्पताल में जब मारे गए नक्सलियों के शव लाए गए, तब बालकृष्णन के परिजन भी पहुँचे। उसके भाई ने बताया कि बालकृष्णन साल 1983 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था, लेकिन स्कूली दिनों से ही माओवादी संगठन से प्रभावित होकर उससे जुड़ गया। 1999 में जेल जाने के बाद से परिवार का उससे कोई संपर्क नहीं था। भाई का कहना था । आज 25 साल बाद उसके मारे जाने की खबर मिली, इसलिए हम शव लेने आए हैं ताकि विधि-विधान से उसका अंतिम संस्कार कर सकें।
इस बयान ने उन परिजनों की पीड़ा भी सामने रख दी, जो सालों तक अपने बेटे और भाई की तलाश में भटकते रहे।
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