छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में स्थित 135 मिलियन टन के किम्बर लाइट का विशाल खजाना एक बार फिर सुर्खियों में है। राज्य की नई विष्णुदेव साय सरकार ने इस मामले में हाईकोर्ट में अर्जेंट सुनवाई के लिए याचिका दायर करने की तैयारी शुरू कर दी है। यह कदम राज्य की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाई पर ले जाने की दिशा में एक बड़ा प्रयास माना जा रहा है।
इस विवाद की जड़ें साल 2000 के पहले की हैं, जब मध्य प्रदेश की दिग्विजय सिंह सरकार ने हीरा खनन के लिए टेंडर जारी किया था। छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बनने के बाद, तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने इस टेंडर को निरस्त कर दिया था। इसके बाद से मामला कानूनी जाल में फंसा हुआ है। लगभग दो दशक बाद भी इस पर कोई ठोस फैसला नहीं आया है।
2022 में भूपेश बघेल सरकार ने भी मामले में तेज़ी लाने के लिए अर्जेंट हियरिंग की अपील की थी, लेकिन सुनवाई नहीं हो सकी। अब विष्णुदेव साय सरकार एक बार फिर इस मामले में तेजी लाने की कोशिश में जुटी है ताकि खनन प्रक्रिया जल्द से जल्द शुरू हो सके।
*राज्य और जिले के नागरिकों को हो सकते हैं ये बड़े फायदे:*
- रोजगार के अवसर: खनन से स्थानीय लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हजारों रोजगार मिलने की संभावना है।
- आर्थिक बूस्ट: राज्य की अर्थव्यवस्था में खनन से बड़ा योगदान होगा, जिससे छत्तीसगढ़ को व्यापक आर्थिक लाभ होगा।
- इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास: खनन क्षेत्र के विकास के साथ सड़कों, बिजली, और पानी की सुविधाओं का विस्तार होगा।
- स्थानीय व्यापार में उछाल: आस-पास के छोटे व्यवसायों को खनन गतिविधियों से बड़ा फायदा होगा, जिससे उनकी आय में इजाफा होगा।
- कौशल विकास: खनन कंपनियों द्वारा चलाए जाने वाले कौशल विकास कार्यक्रमों से स्थानीय युवाओं को रोजगार की नई संभावनाएं मिलेंगी।
इस विशाल खनन प्रोजेक्ट के सफल होने पर छत्तीसगढ़ देश के अग्रणी खनिज-समृद्ध राज्यों में शामिल हो सकता है।