हिमांशु साँगाणी/गरियाबंद
गरियाबंद महावारी जैसे संवेदनशील मुद्दे पर खुलकर चर्चा करना, जो कभी एक वर्जित विषय था, अब कल्पना पाटिल जैसी महिलाओं के प्रयासों से सामान्य होता जा रहा है। रायपुर निवासी कल्पना पाटिल को “सेनेटरी वुमन” के नाम से भी जाना जाता है । पिछले 15 वर्षों से, पाटिल न केवल महिलाओं को सेनेटरी नैपकिन के उपयोग के प्रति जागरूक कर रही हैं, बल्कि समाज के भीतर इस विषय को लेकर फैले भ्रम और झिझक को भी चुनौती दे रही हैं।
जिले में पिछले 5 दिनों से गरियाबंद महिला बाल विकास विभाग के साथ मिलकर पाटिल इस अभियान को आगे बढ़ा रही है इस अभियान का असर अब ग्रामीण क्षेत्रों तक भी पहुंच रहा है, जहां महिलाएं महावारी से जुड़ी स्वच्छता पर बिना किसी हिचकिचाहट के बात कर रही हैं। गरियाबंद के आदिवासी बहुल इलाकों में भी बदलाव नजर आ रहा है, जहां अब महिलाएं पुरानी रूढ़िवादी सोच से बाहर निकलकर सेनेटरी नैपकिन के उपयोग की जानकारी ले रही हैं। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत हाल ही में कल्पना पाटिल ने जिले के कई स्कूलों में जागरूकता अभियान चलाया, जिससे महावारी स्वच्छता के प्रति लड़कियों में जागरूकता आई है।
महिला बाल विकास विभाग ने गरियाबंद ने‘शुचिता योजना’ के तहत जिले के 75 स्कूलों और कॉलेजों में सेनेटरी नैपकिन एटीएम और भस्मक मशीनें (नेपकिन डिस्ट्रॉय मशीनें) लगाई हैं। यह पहल छात्राओं को सेनेटरी नैपकिन की सुलभता और सुरक्षित निस्तारण की सुविधा देती है। हालांकि, शुचिता योजना के प्रभावी क्रियान्वयन में कुछ चुनौतियाँ सामने आई हैं। जिला अधिकारी अशोक पांडे के अनुसार, कई स्थानों पर इन मशीनों के रखरखाव की समस्या के चलते उनका उपयोग बाधित हो रहा है। विभाग ने इस मुद्दे को सरकार के समक्ष रखा है ताकि जल्द समाधान हो सके और छात्राओं को इन सुविधाओं का पूर्ण लाभ मिल सके।
जिले की महिलाओं में जागरूकता लाना हमारा उद्देश्य : जिला अधिकारी ।
महिला एवं बाल विकास विभाग के जिला अधिकारी अशोक पांडेय बताते है कि चूंकि गरियाबंद आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है । “महावारी ” जैसे विषय को लेकर हमारे यहाँ आज भी पुरानी सोच है लोग इस बारे में बोलना ही नही चाहते है । इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए हमने पिछले 5 दिनों में जिले के कई स्कूलों और कॉलेज में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत कल्पना पाटिल जी के माध्यम से जागरूकता लाने का प्रयास किया है । हमारा उद्देश्य है कि हमारे जिले में महिलाएं पुरानी रूढ़िवादी सोच से बाहर निकल कर महावारी के समय कपड़ा इस्तेमाल करने से होने वाली बीमारियों से बच्चे और सेनेटरी नैपकिन का उपयोग कर स्वस्थ जीवन जिए ।
रूढ़िवादी सोच से बाहर निकलना जरूरी : पाटिल ।
कल्पना पाटिल ने बताया कि आज भी हमारे समाज में माहवारी को लेकर पुरानी सोच कायम हैं जहां आज भी माहवारी के दिनों में महिलाओं को जमीन पर सुलाया जाता है । और उसे श्राप की तरह समझा जाता है । लड़कियो से परिवार की कोई भी महिला इस बारे में खुलकर बात नही करती है । जिसकी वजह से उन्हें गंभीर बीमारियां हो जाती है । हम आज 21वीं सदी में जी रहे है । इस रूढ़िवादी सोच को खत्म करना बहुत जरूरी है इसी उद्देश्य से मैं पिछले 15 सालों से माहवारी से होने वाली बीमारियों के खिलाफ महिलाओं और लड़कियों को जागरुक करते हुए सेनेटरी नैपकिन के इस्तेमाल के लिए प्रेरित कर रही हूं ताकि उनसे होने वाली गंभीर बीमारियों से वे बच सके ।