छत्तीसगढ़ में 24 घंटे में डिजिटल अरेस्ट का दूसरा मामला , नाबालिक की जान पर बनी ।

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By Himanshu Sangani

हिमांशु सांगाणी / गरियाबंद

रायपुर: साइबर अपराधियों ने ठगी के नए तरीके इजाद कर लिए हैं, जो न केवल आर्थिक नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि पीड़ित को मानसिक और भावनात्मक रूप से तोड़ने की कोशिश करते हैं। छत्तीसगढ़ में 24 घंटे के अंदर सामने आए दो हाई-प्रोफाइल मामलों ने इस खतरे को उजागर किया है।

पहले मामले में भिलाई की रश्मि ग्रुप के वाइस प्रेसिडेंट इंद्रप्रकाश कश्यप से 49 लाख रुपये ठगे गए, जबकि दूसरे मामले में रायपुर में आईआईटी की तैयारी कर रहे 16 वर्षीय छात्र को ‘डिजिटल अरेस्ट’ का शिकार बनाया गया।

डिजिटल अरेस्ट’: ठगी या मानसिक कैद?

रायपुर में हुई घटना में ठगों ने खुद को कस्टम और मुंबई क्राइम सेल का अधिकारी बताकर छात्र को धमकाया। उन्होंने कहा कि उसके नाम से एक पार्सल पकड़ा गया है, जिसमें आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े सामान पाए गए हैं। ठगों ने फर्जी दस्तावेज और तस्वीरें भेजकर उसे यकीन दिलाया कि वह गंभीर संकट में है। डर और भ्रम की स्थिति में छात्र ने खुद को हॉस्टल के कमरे में बंद कर लिया। उसने किसी से बात नहीं की और पूरी तरह से ठगों के निर्देशों का पालन किया।

परिवार की जागरूकता ने बचाई जान

घटना का खुलासा तब हुआ जब छात्र की मां ने उसे फोन किया। घबराए हुए छात्र ने अपनी स्थिति बताई। मां ने तुरंत दुर्ग के पुलिस अधिकारियों से संपर्क किया। पुलिस ने समझाया कि “डिजिटल अरेस्ट” जैसी कोई प्रक्रिया नहीं होती और यह एक ठगी का मामला है।

मनोवैज्ञानिक दबाव: ठगों की नई रणनीति

साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि यह ठगी का उन्नत रूप है, जहां ठग केवल पैसों के पीछे नहीं हैं, बल्कि पीड़ित को मानसिक रूप से कमजोर और अलग-थलग करने की रणनीति अपनाते हैं। यह तकनीक ठगी को ज्यादा खतरनाक बना रही है। इस घटना ने साइबर सुरक्षा के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य पर भी सवाल खड़े किए हैं।

  1. साइबर अपराध के प्रति जागरूकता बढ़ानी होगी।
  2. मनोवैज्ञानिक सहायता का महत्व बढ़ा है।
  3. स्कूल और कॉलेज स्तर पर साइबर सुरक्षा के प्रति प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

कैसे बच सकते हैं?

  1. अनजान कॉल्स पर निजी जानकारी न दें।
  2. संदिग्ध कॉल्स की सत्यता जांचने के लिए तुरंत संबंधित विभाग से संपर्क करें।
  3. बच्चों और युवाओं को ठगी की तकनीकों के बारे में शिक्षित करें।
  4. ऐसी घटनाओं की तुरंत पुलिस को रिपोर्ट करें।

साइबर अपराध बन रहा है मानसिक शोषण का हथियार

छत्तीसगढ़ की इन घटनाओं ने यह साबित कर दिया है कि साइबर अपराध अब केवल आर्थिक नुकसान तक सीमित नहीं है। यह मानसिक शोषण और डर पैदा करने का माध्यम बनता जा रहा है।यहां सवाल यह उठता है कि क्या समाज और कानून व्यवस्था ऐसे अपराधों से निपटने के लिए तैयार हैं? जागरूकता, सतर्कता और तकनीकी समझ ही इस डिजिटल जाल से बचने का उपाय है।

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