राजिम में रेत की लूट और प्रशासन की अघोषित छुट नदियां सूख रहीं सेटिंगें चल रही जाने राजिम में रेत के महाकुंभ का खेल ।

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By Himanshu Sangani

हिमांशु साँगाणी पैरी टाइम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद

राजिम में रेत की लूट माफिया का बोलबाला! रात में 50 से अधिक हाईवा बेरोकटोक गुजरते हैं, सिस्टम मौन है। पढ़िए रेत और सत्ता की सेटिंग का पर्दाफाश।

गरियाबंद जब रात के 11 बजते हैं, तब राजिम की धरती पर माफिया के लिए गोल्डन बेल्ट खुलती है। ना कोई रोक, ना कोई टोक… बस रेत, हाईवा और सेटिंग प्रशासन सो रहा होता है, और माफिया ‘उठा’ रहा होता है पैरी नदी की अस्मिता।

राजिम में रेत की लूट

राजिम में रेत की लूट

राजिम में रेत की लूट रेत ले जाओ, लोकतंत्र छोड़ जाओ

कहते हैं लोकतंत्र में चार स्तंभ होते हैं – लेकिन राजिम में तो चौथा स्तंभ यानी पत्रकार भी रेत में दबा दिए जा रहे हैं। अब यहां लोकतंत्र नहीं, रेतंत्र चलता है। घाटों पर चेन माउंटेन ऐसे उतरती है जैसे किसी म्यूजिक वीडियो में हिरोइन स्लो मोशन में उतरती हो।

अवैध? किसे कहते हैं?

अधिकारी कहते हैं हम 24 घंटे निगरानी करते हैं।
हमने पूछा –कहां?
वो बोले – फाइल में!
बेरियर पर कोई नहीं, गेट खुले हैं, और ट्रक ऐसे निकलते हैं जैसे कोई विवाह समारोही बारात हो। हर हाईवा में रेत, हर हाईवा के पीछे सेटिंग।

घाट, गुर्गे और गारंटी

राजिम के कुरूस केरा घाट से लेकर पितई बंद और नर्सरी की झाड़ियों तक, एक तगड़ा ‘ऑपरेशन रेत-ऑनाइट’ चलता है। यहां मशीनें झाड़ियों में छिपाई जाती हैं, और सच्चाई माइनिंग विभाग की आंखों में। और कैमरे? कैमरे नहीं होते… वो तो केवल सरकारी विज्ञापनों में ही ‘लगे’ होते हैं।

रेत का रॉयल राज

राजिम अब धार्मिक स्थल नहीं, ‘रेत एक्सप्रेसवे’ बन चुका है। हाईवा वालों के लिए VIP लेन है। ना टोल, ना टैक्स, ना टैग। और अगर गलती से कोई सवाल पूछ ले तो उसे ‘रेत में गाड़ दो’ नीति अपनाई जाती है।

नेता, अफसर और मौन की महाशक्ति

सवाल उठता है – कौन हैं ये लोग?
उत्तर मिलता है – वही, जो चुनावों में विकास की बात करते हैं और रात में घाट पर ‘मौन व्रत’ धारण करते हैं। प्रशासन इतना खामोश है कि कोई पूछ ले क्या रेत की चोरी हो रही है?
तो जवाब आता है हमें क्या पता? हम तो हर समय व्यस्त है उद्घाटन में ।

माफिया का मठ

राजिम की रेत अब सिर्फ खनिज नहीं, राजनीतिक पोषण तत्व’ बन चुकी है। हर ट्रक से निकला रेत, किसी न किसी कुर्सी के नीचे जाता है। और पत्रकार? अगर वो रिपोर्टिंग करने जाएं, तो उनका कैमरा नहीं, सिर तोड़ने की योजना पहले बनती है।

रेत चुराओ शासन को राजस्व का चुना लगाओ

इस जिले में रेत चोरी नहीं, रेत चुराओ मिशन है। योजनाबद्ध, संगठित, और सिस्टम प्रमाणित। यहां माफिया नहीं डरते, बल्कि सिस्टम उन्हें सुरक्षा कवच पहनाता है। सवाल अब ये नहीं है कि रेत चोरी हो रही है या नहीं…सवाल ये है कि प्रशासन और नेता मिलकर इसे कब से रेट कर रहे हैं?

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अधिमान्य पत्रकार गरियाबंद

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