रवि कुमार / दुर्ग
दुर्ग आईआईटी भिलाई के एनुअल फेस्ट मिराज 5.0 में स्टैंडअप कॉमेडियन यश राठी का प्रदर्शन एक हास्य शो से ज्यादा एक सबक बन गया है—और वो भी एक कड़वा सबक। छात्रों की आयोजक समिति ने मनोरंजन के लिए राठी को बुलाया था, लेकिन इस ‘मनोरंजन’ ने प्राध्यापकों और परिवारों के कानों को बंद करने पर मजबूर कर दिया। सवाल यह उठता है कि आखिर कब से हास्य का मतलब गाली-गलौज और अभद्र भाषा हो गया?
हास्य के नाम पर कैसी आज़ादी?
यश राठी ने शो की शुरुआत सामान्य कॉमेडी से की, लेकिन कुछ ही मिनटों में कार्यक्रम एक अभद्र शब्दों के संगम में बदल गया। क्या यह वही ‘स्टैंडअप कॉमेडी’ है, जिसने समाज में व्यंग्य और तर्कसंगत हास्य के रूप में अपनी पहचान बनाई थी? या अब स्टैंडअप कॉमेडी का मतलब महज विवाद खड़ा करना और सोशल मीडिया पर फॉलोअर्स बटोरना रह गया है?
आईआईटी का निर्णय और प्रतिष्ठा
आईआईटी भिलाई जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में ऐसा कार्यक्रम आयोजित करना सोचने पर मजबूर करता है कि कार्यक्रम के चयन में कितनी सतर्कता बरती गई। संस्थान के डायरेक्टर राजीव प्रकाश ने जांच समिति गठित करने का ऐलान किया, लेकिन क्या यह सवाल काफी नहीं कि एक कॉमेडियन को न्योता देने से पहले उसकी सामग्री का मूल्यांकन क्यों नहीं हुआ?
सोशल मीडिया का ‘वायरल’ असर
वीडियो के वायरल होने पर सोशल मीडिया पर आलोचना का बवंडर खड़ा हो गया। लोग पूछने लगे, “क्या ये वही आईआईटी है, जहां देश के सबसे मेधावी दिमाग तैयार होते हैं?” एनएसयूआई और करणी सेना ने प्रदर्शन करके मामला और गर्म कर दिया। हास्यास्पद यह है कि एक कॉमेडी शो ने आईआईटी को राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बना दिया।
हास्य और अभद्रता के बीच की रेखा
शायद यह घटना एक चेतावनी है कि मनोरंजन के नाम पर अनियंत्रित भाषा और सामग्री को अनदेखा करना अब और नहीं चल सकता। हास्य की सीमा तब तक ही हास्य है, जब तक वह सम्मानजनक है। यश राठी और ऐसे अन्य कलाकारों के लिए यह समय है सोचने का कि क्या वे अपनी कला के साथ दर्शकों का सम्मान भी कर रहे हैं या केवल सुर्खियों का पीछा कर रहे हैं। आईआईटी भिलाई की यह घटना एक सीख होनी चाहिए कि हास्य और शिष्टाचार के बीच की रेखा कभी धुंधली न हो—वरना फिर स्टैंडअप कॉमेडी नहीं, स्टैंडअप विवाद ही बचेगा।