बढई पारा स्कूल जर्जर इमारत में ज्ञान का कारोबार, बच्चों की किस्मत ईश्वर के भरोसे।

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By Himanshu Sangani

हिमांशु साँगाणी पैरी टाइम्स 24×7 डेस्क गरियाबंद

बढई पारा स्कूल जर्जर नवापारा के बढई पारा स्कूल की जर्जर हालत में बच्चों की पढ़ाई भगवान भरोसे! जानिए कैसे हादसे की आशंका के बीच स्कूल में लग रही कक्षाएं।

गरियाबंद नवापारा राजिम शिक्षा का मंदिर कहते हैं स्कूल को, पर नवापारा नगर के दिल में धड़क रहा बढई पारा स्कूल अपनी हालत से चीख-चीख कर कह रहा है यहां पढ़ाई नहीं, बच्चों की किस्मत का खेल हो रहा है! सदर रोड पर स्थित इस प्राचीन इमारत में इस शिक्षा सत्र से तीन सरकारी स्कूल शासकीय प्राथमिक शाला, पूर्व माध्यमिक शाला और पूर्व माध्यमिक कन्या शाला संचालित हो रहे हैं। मगर स्कूल की बिल्डिंग इतनी जर्जर है कि किसी दिन पढ़ाई के साथ बच्चों का अंतिम संस्कार भी यहीं हो सकता है!

बढई पारा स्कूल जर्जर

बढई पारा स्कूल जर्जर

बढई पारा स्कूल जर्जर हर सुबह रोमांच शुरू

बच्चों को स्कूल में दाखिल होते देखिए, मानो कोई एडवेंचर पार्क में झूला झूलने आया हो। टूटी छत, उखड़ी दीवारें, झूलते पंखे और दरकते खंभे! फिर भी स्कूल प्रबंधन ने हिम्मत नहीं हारी पढ़ाई जारी है, जैसे कुछ भी हुआ तो सिर्फ भगवान जिम्मेदार!प्लास्टर गिरा, भाग्य बचा – पिछले दिनों मध्यान्ह भोजन कक्ष में ऊपर का प्लास्टर भरभरा कर गिरा। अगर उस समय रसोईया वहीं होता, तो खिचड़ी की जगह रोटी-कफन परोसना पड़ता! किस्मत अच्छी थी कि कोई जनहानि नहीं हुई, मगर अफसरों की नींद फिर भी नहीं टूटी।

शासन-प्रशासन को परवाह नहीं

नगर वासियों का कहना है कि इस स्कूल की हालत सालों से ऐसी ही है। अधिकारियों को फाइलों में स्कूल ठीक-ठाक दिखता है, मगर हकीकत में यह भवन हादसे को दावत दे रहा है। यहां पढ़ाई से ज्यादा बच्चों की जान जोखिम में है।

शिक्षा या खिलवाड़?

बच्चे जिन कमरों में पढ़ते हैं, वहां दीवारों से ईंटें झांक रही हैं, छतें दरक चुकी हैं और फर्श में गड्ढे बन चुके हैं। पालकों का कहना है कि बच्चे रोज स्कूल जाते हुए डरते हैं। एक माता-पिता ने तंज कसते हुए कहा स्कूल नहीं, कब्रिस्तान में पढ़ाई करवानी है क्या?

कब तक चलेगा तमाशा?

नगरवासी और पालक दोनों परेशान हैं। सबकी एक ही मांग है – स्कूल को गिराकर तुरंत नया भवन बनाया जाए, ताकि बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो सके। मगर अफसरशाही को जैसे नींद से उठने का मन ही नहीं। अफसर अगर मौका मुआयना करते भी हैं, तो दीवारों पर लगी नेताजी की फोटो देखकर लौट जाते हैं!

सवाल बड़ा, जवाब कौन देगा?

क्या शासन व प्रशासन को किसी बड़े हादसे का इंतजार है? क्या कोई बच्चा घायल होगा, तब जाकर अफसर सोचेंगे कि अब स्कूल बनाना चाहिए? या तब तक मुआवजा बांटकर फाइल बंद करने का फार्मूला चलता रहेगा?

नगरवासियों की चेतावनी

स्थानीय लोगों ने साफ कहा है कि अब सब्र का बांध टूट चुका है। अगर जल्द ही स्कूल भवन का निर्माण शुरू नहीं किया गया, तो वे उग्र आंदोलन करेंगे और इसकी पूरी जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की होगी। नगर के प्रबुद्धजनों ने भी इस विषय को लेकर कलेक्टर तक शिकायत पहुंचाई है।

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अधिमान्य पत्रकार गरियाबंद

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