गरियाबंद CMHO कार्यालय में 10:01 बजे तक झूलते रहे ताले, तो कलेक्टर 9.45 को ही पहुंचे गए कार्यालय, ऑफिस में लगी बायोमेट्रिक मशीनें भी बनी हाथी के दांत ?

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By Himanshu Sangani

हिमांशु साँगाणी गरियाबंद पैरी टाइम्स 24×7 डेस्क

गरियाबंद CMHO कार्यालय में 10:01 बजे तक झूलते रहे ताले । बायोमेट्रिक मशीनें भी हाथी के दांत बनी हुई हैं — न सभी विभागों में लगीं, न सही से चल रही हैं। अफसरों की ‘डेली अप-डाउन संस्कृति’ और बायोमेट्रिक मशीनों की खानापूर्ति ने बिगाड़ी सरकारी अनुशासन की सेहत Pairi Times 24×7 की पहले की रिपोर्ट अब हकीकत बनकर सामने है।,

गरियाबंद जिले में सरकारी अनुशासन की हालत अब ICU में पहुंच चुकी है। एक तरफ जहां जिले के मुखिया कलेक्टर भगवान सिंह उइके 9:45 बजे कलेक्ट्रेट पहुंचकर अपने कार्य में जुट जाते हैं, वहीं दूसरी तरफ CMHO कार्यालय का गेट 10:01 तक भी खुलने को तैयार नहीं होता।

गरियाबंद CMHO कार्यालय

गरियाबंद CMHO कार्यालय

गरियाबंद CMHO कार्यालय में 10:01 बजे तक झूलते रहे ताले

Pairi Times 24×7 ने बीते सप्ताह जो रिपोर्ट प्रकाशित की थी, उसमें बताया गया था कि गरियाबंद के कई वरिष्ठ अधिकारीयों की देखा देखी कर्मचारी भी रायपुर, अभनपुर, राजिम कोपरा और पाण्डुका जैसे क्षेत्रों से रोजाना बस से अप-डाउन करते हैं। अब इन ‘यात्रा प्रेमी अधिकारियों’ की देखा-देखी उनके अधीनस्थ कर्मचारी भी स्थानीय रहने का कष्ट नहीं उठाते।

हाथी के दांत बनी बायोमेट्रिक अटेंडेंस मशीन?

अब बात करें सरकारी ‘बायोमेट्रिक उपस्थिति मशीनों’ की, तो उनका हाल भी अफसरों जैसा ही है – लगाई तो गई हैं, पर सिर्फ दिखावे के लिए। कई विभागों में अभी तक मशीनें पहुंची ही नहीं हैं, और जहां लगी भी हैं वहां कर्मचारियों के चेहरे मशीनें तक पहचानने से इनकार कर रही हैं! जिसका फायदा भी हमारे शासकीय सेवक जमकर उठा रहे है

अटेंडेंस मशीन में प्रॉब्लम भी बन रहा फायदा

कुछ कर्मचारियों का तो जैसे “फेस रिकॉग्नाइज” ही नहीं होता, और जब चेहरा न पहचाना जाए, तो गैरहाजिरी किस गिनती में आए! इस तकनीकी ‘खामी’ ने अब ‘मनमानी’ का नया रास्ता खोल दिया है।CMHO कार्यालय, जो लोगों की सेहत का केंद्र माना जाता है, खुद समय पालन की गंभीर बीमारी से ग्रसित है। सवाल यह है कि जो विभाग जनता की सांसों की निगरानी करता है, वो खुद समय की धड़कनों से बेखबर क्यों है?

Pairi Times 24×7 पूछता है — क्या जिले को अब एक ‘फेस रिकॉग्नाइज सुधार अभियान’ चलाना चाहिए या अफसरों के लिए एक ‘डिजिटल अलार्म योजना’? वरना बायोमेट्रिक मशीनें यूं ही हाथी के दांत बनी रहेंगी — देखने के लिए कुछ और, चबाने के लिए कुछ और!

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अधिमान्य पत्रकार गरियाबंद

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