हिमांशु साँगाणी
गरियाबंद: गरियाबंद जिले के मैनपुर बिजली विभाग ने ‘धृतराष्ट्र’ का रूप धारण कर लिया है— जनता परेशान है, किसान बेहाल हैं, बच्चे परीक्षा में पसीना बहा रहे हैं, लेकिन विभागीय अधिकारी आंखें मूंदकर समाधि में लीन हैं। पिछले दो महीने से लो-वोल्टेज की समस्या ने ऐसा कहर बरपाया है कि न घरों में पंखा चल रहा है, न खेतों में मोटर पंप। जनता के अनुसार, बिजली तो आती-जाती रहती है, मगर विभागीय अधिकारियों की जवाबदेही स्थायी रूप से गायब हो गई है।

किसानों के खेत सूखे, हलर मिल में ताला!
मैनपुर बिजली विभाग के इलाके के किसानों का हाल ऐसा है जैसे बिन पानी के मछली तड़पती है। मक्का, धान और गेहूं की फसलें सूखने की कगार पर हैं क्योंकि मोटर पंप लो-वोल्टेज में ‘योगासन’ कर रहे हैं। व्यापारी भी हलर मिल और बिजली से चलने वाले कारोबार को देखकर सिर्फ आंसू बहा रहे हैं।
एनएसयूआई ने खोला मोर्चा, 18 मार्च को तहसील का घेराव
जनता की इस पीड़ा को देखते हुए एनएसयूआई (NSUI) ने मैनपुर बिजली विभाग के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए 18 मार्च को अमलीपदार तहसील कार्यालय का घेराव करने की तैयारी कर ली है । आंदोलन की कमान जिला पंचायत सदस्य संजय नेताम, धर्मेंद्र बघेल और मनोज पांडे के हाथों में होगी।
बिजली विभाग की ‘कुंभकर्णी निद्रा’
मैनपुर बिजली विभाग के अधिकारी हर बार की तरह गोलमोल जवाब देकर जनता को ‘सांत्वना’ दे रहे हैं। इस मुद्दे पर जब मैनपुर के बिजली विभाग के एई संजीव कुमार बंजारे से संपर्क किया गया, तो उन्होंने समस्या मानने से ही इनकार कर दिया। शायद विभागीय अधिकारियों को जनता की शिकायतें वीआईपी कॉलर ट्यून लगती हैं, जिसे सुनकर वे तुरंत फोन काट देते हैं। इधर मैनपुर बिजली विभाग की लापरवाही से त्रस्त किसानों ने भी चेतावनी जारी कर दी है उनका कहना है कि यदि छह दिनों के भीतर समस्या का समाधान नहीं हुआ, तो वे भी उग्र आंदोलन करने को बाध्य रहेंगे ।
जनता का सवाल – “बिजली तो गई, पर जवाबदारी कब आएगी?”
अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन बिजली संकट पर जागेगा या जनता को ‘हर-हर महादेव’ के भरोसे छोड़ दिया जाएगा? एनएसयूआई ने साफ कह दिया है कि अगर प्रशासन इस समस्या को गंभीरता से नहीं लेता, तो आंदोलन उग्र होगा, और इसकी पूरी जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की होगी।