रेत माफिया का ‘रेतीला साम्राज्य’: महानदी के सीने पर चैन माउंटेन का शोर और जिला प्रशासन की खामोशी”

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By Himanshu Sangani

हिमांशु साँगाणी / गरियाबंद

गरियाबंद। जब दिन ढलता है और रात की चादर फैलती है, तब गरियाबंद जिले की महानदी के घाटों पर एक अलग ही दुनिया बसती है। कुरुसकेरा, कोपरा, फिंगेश्वर और चौबेबांधा जैसे इलाकों में चैन माउंटेन मशीनों की दहाड़ हर रात गूंजती है। यह आवाजें किसी विकास कार्य की नहीं, बल्कि महानदी के सीने पर हो रहे अवैध रेत खनन की गवाही देती हैं। कुछ दिनों से धमतरी जिले की ओर से मोहेरा रेत घाट से भी रात में रेत लेकर हाइवा जिले के सीमा से गुजर रही है

फाइल फोटो ।

रेत माफिया का ‘विकास मॉडल’

यहां रेत माफिया कानून को ताक पर रखकर हर रात 50 से 100 हाइवा भरकर रेत ले जाते हैं। हर ट्रिप का चार्ज 5,000 से 6,000 रुपये तय है, जिसे माफिया धड़ल्ले से वसूलते हैं। यह ‘टैक्स’ सरकार के खाते में नहीं जाता, बल्कि सीधे माफियाओं और उनके ‘संरक्षकों’ की जेब में पहुंचता है।

सूत्रों के मुताबिक, एक चैन माउंटेन मशीन का मासिक किराया करीब 3 लाख रुपये होता है। लेकिन यह लागत एक ही रात में पूरी हो जाती है। और यह खेल केवल माफिया तक सीमित नहीं है। इसका एक हिस्सा उन जनप्रतिनिधियों तक भी पहुंचता है, जो इन घाटों को ‘संरक्षण’ देने के लिए मशहूर हैं।

राजनीति और रेत: ‘साझेदारी का नया मॉडल’

आजकल राजनीति और रेत का रिश्ता गहरा होता जा रहा है। इसकी बानगी जिले में भी देखने को मिल रही है सूत्रों की माने तो राजिम के एक बड़े जनप्रतिनिधि कुछ दिनों पूर्व 90 लाख रुपये का सेटअप—चैन माउंटेन मशीन और हाइवा खरीदकर सुर्खियों में आये थे यह शिकायत पार्टी और संगठन के आला नेताओं तक पहुंची है । तो अब गुपचुप तरीके वह अपने खास लोगों के जरिए इस खनन के जरिए चुनावी खर्च निकाल रहे हैं।

वाहन और स्टॉफ की कमी से जूझता विभाग

खनिज विभाग की हालत किसी पंगु योद्धा से कम नहीं। पहले कार्रवाई के लिए एक पुरानी गाड़ी थी, जो अब वापस चली गई। अब अधिकारी किसी नए वाहन के इंतजार में बैठकर ‘कार्रवाई’ का सपना देख रहे हैं। इसके अलावा स्टॉफ की भी कमी विभाग के लिए एक बड़ी समस्या बनी हुई है । एक और इस बीच, रेत माफिया का साम्राज्य और मजबूत होता जा रहा है।

पर्यावरण और राजस्व पर चोट

इस अवैध खनन का असर केवल नदी के अस्तित्व तक सीमित नहीं है। सरकार को हर दिन लाखों रुपये की रॉयल्टी का नुकसान हो रहा है, वहीं पर्यावरणीय नुकसान का हिसाब शायद ही कोई रख रहा हो। महानदी, जो कभी ‘जीवनदायिनी’ कहलाती थी, अब वह इन रेत माफियाओं के चलते संकटग्रस्त हो चुकी है।

रेत का साम्राज्य, खामोश प्रहरी’

कुरुसकेरा,कोपरा,फिंगेश्वर से लेकर चौबेबांधा तक, महानदी के घाट अब रेत माफियाओं का साम्राज्य बन चुके हैं। और प्रशासन? वह मूक दर्शक की भूमिका निभा रहा है। शायद उन्हें भी इंतजार है उस गाड़ी का, जो कभी आएगी और कार्रवाई शुरू होगी। तब तक, चैन माउंटेन मशीन की दहाड़ और माफियाओं की मौज जारी रहेगी।

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