गरियाबंद—जिला प्रशासन की शैली को लेकर 11 अक्टूबर को प्रकाशित “28 दिनों बाद भी राजस्व निरीक्षकों का तबादला आदेश अधर में” शीर्षक नामक खबर का असर तो हुआ, लेकिन असरदारों पर असर कब होगा ? यह सवाल अब भी कायम है।
13 सितंबर को राज्य शासन ने 28 राजस्व निरीक्षकों के तबादले का आदेश जारी किया, जिनमें गरियाबंद जिले के तीन निरीक्षकों का नाम भी शामिल था। खबर प्रकाशित होने के बाद हरकत में आए प्रशासन ने दो निरीक्षकों को कार्यमुक्त कर दिया, लेकिन तीसरे निरीक्षक गेवेंद्र साहू पर अब भी कृपा बरस रही है।
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे दिलचस्प बात यह है कि साहू पर पटवारियों ने गंभीर शिकायतें की थीं, जिसके बाद उनका तबादला सुकमा किया गया था। लेकिन आदेश के 40 दिन बाद भी साहू न केवल गरियाबंद में बने हुए हैं, बल्कि उन्हें बासीन और कौंदकेरा का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा गया है। ऐसा लगता है कि राज्य शासन के आदेश गरियाबंद जिले में केवल कागजों तक ही सीमित हैं।
सूत्रों की मानें तो साहू को बचाए रखने के पीछे राजनीतिक संरक्षण का हाथ है। एक वरिष्ठ मंत्री के अटैच कर्मचारी के सहयोग से साहू का तबादला आज भी रुका हुआ है। और क्यों न रुके? जब प्रशासन का कोई दबाव न हो और सारा खेल सत्ता के गलियारों में तय हो रहा हो, तो आदेश का पालन होना महज एक औपचारिकता ही रह जाता है।
यह तबादला न केवल शासन के आदेशों की धज्जियां उड़ा रहा है, बल्कि यह भी दिखा रहा है कि “विष्णु का सुशासन” का नारा अब खोखला होता जा रहा है। अधिकारी आराम से सत्ता के साथ मिलकर नियमों को ताक पर रख रहे हैं,अब इस खबर के बाद भी प्रशासन की नींद टूटती है या फिर यह खेल अनवरत जारी रहेगा। आखिर सवाल यही है कि जब आदेश ही नहीं मानने हैं, तो तबादले का तमाशा क्यों?
इस मामले को लेकर अर्पिता पाठक ( डिप्टी कलेक्टर ) प्रभारी अधिकारी भू अभिलेख से फोन पर बात करने पर कहा कि 2 निरीक्षकों को कार्यमुक्त कर दिया गया । 1 निरिक्षक गवेन्द्र साहू को एक दो दिन में कार्यमुक्त कर दिया जाएगा।